"एक अचंभव हमने देखा" रसूखदारों के साठ - गांठ कर अहस्थानांतरित आदिवासी जमीन कि हो गई रजिस्ट्री-अधिकारियो क़ो जानकारी के बाद भी नहीं हुईं कार्यवाही
आदिवासी, अहीर, केवट, वनविभाग व अहस्तांतरणीय भूमियो मे चल रहा खरीद-फरोख्त का खेल- मामला ग्राम कल्याणपुर के हल्का पटवारी 295-296-297 का
अनूपपुर(प्रकाश सिंह परिहार):- अनूपपुर जिले का कोतमा क्षेत्र इन दिनों कृषि भूमि में अवैध प्लाटिंग, सरकारी जमीनों में कब्जा के मामले में सुर्खियों में बना हुआ है जिसको लेकर कलेक्टर के आदेश के बाद एसडीएम कोतमा द्वारा 19 अवैध प्लाटिंग करने वालों को नोटिस काट कर जवाब मांगा गया है जिससे अवैध प्लाटिंग करने वालों में हड़कंप मच गई है लेकिन एक अचंभव मामला सामने आया कि अहस्थानांतरित आदिवासी जमीन में कब्जा कर भू-माफियाओं द्वारा इनके हक़ में डाका डालने का कार्य किया जा रहा है यह क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण यहाँ लोगों में शिक्षा का अभाव, जागरूकता की कमी बना रहता है जिसकी वजह से भू -माफियाओं द्वारा येन केन प्रकारेण से हर संभव कोशिश रहती है कि शासकीय जमीनों अथवा कमजोर, निर्बल लोगों की जमीन पर साम- दाम-दण्ड भेद किसी भी प्रकार से उस जमीन पर अपना मालिकाना हक जमाना रहता है और यह सिलसिला अनवरत जारी है!
अहस्तांतरणीय भूमि पर बाहुबलियों का अवैध कब्जा
जानकारी के अनुसार बाहुबलियों द्वारा कोतमा में अहस्तांतरणीय भूमि पर किया गया अवैध कब्जा कई साल बीत जाने के बाद भी अब तक किसी भी प्रकार की कोई जांच व कार्यवाही न होना कहीं न कहीं प्रशासन के ऊपर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता और नाकामी को दर्शाता है। बड़े पैमाने पर बहुत सी ऐसी जमीनों पर जगह- जगह अवैध कब्जा कर के बेंचने का सिलसिला जारी है और इस ओर भी प्रशासन क़ो चिन्हित कर कार्यवाही करने की जरूरत है जिसकी शिकायत भी तहसील स्तर से उच्च स्तर तक की जा चुकी है!
आदिवासी, अहीर, केवट, वनविभाग व अहस्तांतरणीय भूमियो मे चल रहा खरीद-फरोख्त का खेल
एन एच 43 के बगल से पूर्व राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक आदिवासियों की भूमि, अहीर की भूमि, केवट की भूमि, वन विभाग की भूमि व अहस्तांतरणीय भूमि होने के बावजूद भी रशूखदारों ने अपनी पैनी निगाहें जमा रखी हैं और निरंतर इन भूमियों की खरीद-फरोख्त का खेल खेल रहे हैं,सोचनीय विषय है कि पुराने राजस्व रिकार्ड में जो भूमि जंगल या अहस्तांतरणीय या आदिवासी की भूमि दर्ज हैं तो इन भूमियों की खरीदी या बिक्री कैसे संभव है और यदि इस प्रकार की खरीदी बिक्री की गई है तो प्रशासन की कोई हरकत क्यों नही? शासकीय भूमियों पर रशूखदारों के द्वारा कब्जा करने और शासकीय भूमियों के खरीदी व बिक्री की घटना कोई नई बात नहीं है और राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से कई रशूखदारों ने जंगल की भूमियों, आदिवासियों की भूमियों, गैर हक़दार भूमियों और अहस्तांतरणीय भूमियों पर कब्जा कर गोल माल करते हुए उसका पट्टा बनवा कर उस पर अपना आधिपत्य प्राप्त किया है और धीरे-धीरे उन अधिकारियों के तबादले होते गए या रिटायरमेंट होते गए। मामला धीरे-धीरे लोगों के दिमाग से ओझल होता रहा और उन भूमियों पर इनके आधिपत्य की समय सीमा बढ़ती रही, वर्षों से यह प्रक्रिया जारी है। इसे रोक पाने में प्रशासन असफल साबित होते दिखाई दे रही है और भू माफियाओं के हौसले बुलंद होते नजर आ रहे हैं!
यह है मामला
एन.एच 43 के बगल में जंगल चौकी के निकट ग्राम कल्याणपुर पटवारी हलका कल्याणपुर रा. नि. मं. व तहसील कोतमा जिला अनूपपुर में आ. ख. नं. 295/2/1 रकवा 1.472 हे., आ. ख. नं. 296/9/ख रकवा 0.303 हे., ख. नं. 296/9/ग रकवा 0.303 हे., ख. नं. 296/11/क रकवा 0.636 हे., ख. नं. 297/8 रकवा 0.607 हे., ख. नं. 295/3/क/च रकवा 0.024 हे. भूमियों पर अजीमुद्दीन के द्वारा खरीदी-बिक्री खेल कर राजस्व अधिकारियों के साथ सांठ-गांठ कर अपने पुत्रों के नाम पर दर्ज करवा दी गई और अब इन भूमियों पर अवैध कब्जा कर के अच्छा खासा गोदाम बना के अपने शौक के लिए कार्य लगातार कर रहे हैं। ग्राम कल्याणपुर पटवारी हलका कल्याणपुर की ख. नं. 295,296,297 की भूमियां वर्ष 1958-59 की वार्षिक खतौनी जमाबंदी में वर्ग 06 गैर हक़दार काश्तकार अंकित कर कोसई भरिया, गुरजुल भरिया, छोटू अहीर, भुलई अहीर, दद्दी अहीर, मोहन अहीर, सरला भरिया व जैराम केवट के नाम दर्ज हैं। उक्त भूमियों के तीन भूमि स्वामी आदिवासी व शेष अहीर व केवट जाति के थे लेकिन आदिवासियों की ज़मीन की इस तरह से खरीद फरोख्त और किसी अन्य के नाम पर नामांतरण होना समझ से परे है।
आदिवासियों की भूमि में भू माफियाओं की नजर
एक ओर प्रदेश के संवेदनशील मुखिया आदिवासियों के लिए विशेष अभियान चलाते हुए तरह -तरह की योजनाओं के साथ जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर जमीनी स्तर में भू- माफियाओं द्वारा इनका शोषण किया जा रहा है नियमों की बात करें तो आदिवासियों के नाम दर्ज भूमियों की खरीदी-बिक्री लगभग संभव नहीं है और यहां की परिस्थितियां कुछ अलग ही हैं। जिसकी कई बार शिकायत निचले स्तर से उच्च स्तर तक के अधिकारियों के समक्ष भी हो चुकि है राजस्व अधिकारियों व पटवारियों की मिलीभगत से इन भूमियों पर भारी हेराफेरी की गई है और शासन की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया गया है ।
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