मुरैना से आया मोनू मनमाफिक चंबल की तर्ज पर चला रहा रेत की अवैध खदान
अकेले एक अवैध खदान से 9 से 11 लाख रुपये प्रति माह कि वसूली की खबर
ग्रामीणों की आपबीती, रोना-धोना और वन विभाग की मानें तो गोहपारू थाना क्षेत्र के खरबना और खैरी गाँव ऐसे हैं, जहाँ पुलिस और कानून का नहीं, बल्कि माफियाओं का राज चलता है और उन्हें संरक्षण देती है स्थानीय पुलिस और वर्दीधारियों के नुमाइंदे। डीएफओ की टीम पर हमला किया गया था, सहयोगी ने रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी। गश्ती दल को भी जंगल में रोककर धमकाया गया था। वन विभाग के बुलाने पर भी पुलिस नहीं आई और मामला ठंडे बस्ते के हवाले हो गया। निष्कर्ष यह निकला कि चंबल की तर्ज पर गोहपारू में बड़े पैमाने पर रेत का अवैध उत्खनन जोरों पर है। गाँव की कच्ची सड़कों पर दौड़ते ट्रैक्टर देखकर ग्रामीण अपने घरों के भीतर छिप जाते हैं। सबको पता है गलत है, लेकिन बोल कोई नहीं सकता। यह हाल है गोहपारू के खरबना गाँव का और पुलिस के श्जीरो टॉलरेंसश् के दावों का। ग्रामीण बताते हैं कि कई महीने पहले कई बार 100 डायल बुलाई थी, लेकिन पुलिस नहीं पहुँची। 2500 रुपये प्रति ट्रैक्टर वसूली होती है। ‘‘साहब’’ का ड्राइवर कराता है रेत की निकासी? आरोपों की झड़ी है, लेकिन सुनवाई शून्य है। क्या यही है कानून व्यवस्था?
शहडोल। मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के गोहपारू थाना क्षेत्र के गाँव खरबना-खैरी में चंबल की तर्ज पर हवा से बातें करते रेत लोड ट्रैक्टर ग्राम पंचायत की सड़कों पर दौड़ रहे हैं। जी हाँ, खरबना-खैरी से थोड़ा आगे अवैध रूप से रेत खदान का संचालन किया जा रहा है और इन माफियाओं के खौफ से खौफजदा ग्रामीण सिर्फ घर में छिपे रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि इनकी सुनवाई ही नहीं होती। पुलिस से कई बार गुहार लगाने के बाद जब न्याय नहीं मिला, तो इन्होंने वन विभाग के अधिकारियों के दरवाजे खटखटाए। रेत माफियाओं की काल कही जाने वाली दक्षिण वन मंडल अधिकारी (डीएफओ) श्रद्धा पेंड्रो ने ग्रामीणों की पुकार सुनकर मोर्चा संभालने का प्रयास किया, तो उन्हें स्थानीय पुलिस का सहयोग नहीं मिला। घंटों के विवाद और मारपीट की स्थिति निर्मित होने के बाद भी मौके पर स्थानीय पुलिस नहीं पहुँची, जिसकी वजह से ग्रामीणों को मिलने वाला न्याय अधूरा रह गया और अब भी जोरों पर रेत का अवैध उत्खनन-परिवहन जारी है। गौरतलब है कि ग्रामीणों को आपत्ति रेत के अवैध उत्खनन से नहीं है, बल्कि तेज रफ्तार दौड़ रहे ट्रैक्टरों से है, जिनसे जान का खतरा बना हुआ है। बताया जाता है कि ये माफिया इस कदर बेलगाम दौड़ते हैं कि बीते कुछ महीनों में इन्होंने चार बैल और एक भैंस को ट्रैक्टर के नीचे रौंद दिया और यह मामला भी रफा-दफा कर दिया गया।
शाम से दोपहर 2 बजे तक दहशत
ग्रामीणों ने बताया कि शाम लगभग 6 से 7 बजे के बीच रेत के अवैध उत्खनन-परिवहन का कार्य शुरू होता है और तब से ग्रामीण और उनके परिवार अपने-अपने घरों में छिपे रहने को विवश होते हैं, जिसका कारण मात्र यह है कि तेज रफ्तार ट्रैक्टर कभी भी किसी को भी रौंद सकते हैं। इतना ही नहीं, सारी रात तेज रफ्तार दौड़ते ट्रैक्टरों की आवाज से औरतों और बच्चों का जीना दूभर हो चुका है। रेत की यह निकासी जो शाम लगभग 7 बजे से शुरू होती है, दोपहर 2 बजे तक चलती है, जहाँ 10 से 12 ट्रैक्टर रेत की निकासी करते हैं, तो कभी-कभार यह संख्या 18 तक पहुँच जाती है।
कौन है ‘मोनू और मोनू’
चंबल की तर्ज पर संचालित इस अवैध खदान के कर्ता-धर्ता ‘मोनू और मोनू’ नामक दो युवक बताए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि एक मोनू, जो कि जिम्मेदार ‘साहब’ का ड्राइवर है, स्वयं मोटरसाइकिल से ट्रैक्टरों की निकासी और खदान की मॉनिटरिंग करता है और प्रति ट्रैक्टर से 2500 से 3000 रुपये की रकम प्रतिदिन वसूलकर दूसरे मोनू तक पहुँचाता है। दूसरा मोनू उस राशि से अपने हिस्से की कटौती कर गिनती से चार ट्रैक्टर, दो ट्रैक्टर प्रति मोनू की तर्ज पर कटौती कर आका तक इस रकम को पहुँचाता है। बदले में एक मोनू खदान का संचालन और निकासी संभालता है, तो दूसरा मोनू बाहर रहकर पुलिसिया मैनेजमेंट और अन्य विभागों का मैनेजमेंट एवं रेकी की जिम्मेदारी उठाता है। यह जानकारी, जो ग्रामीणों द्वारा दी गई, इसकी जानकारी लगभग आसपास सभी को है, किंतु किसी की मजाल जो कुछ कह सके।
प्रतिदिन 30 से 40 हजार की वसूली
बताया गया कि प्रति ट्रैक्टर से वसूली गई राशि कुल मिलाकर रात भर में लगभग 30 से 40 हजार तक पहुँच जाती है, जिसे कथित श्आर. मोनूश् आका तक पहुँचाते हैं और बदस्तूर कई महीने से यह काम जारी है। विशेषतः यह काम मानसून सत्र के चार महीने में शुरू होता है, क्योंकि इस दौरान रेत की खदानें बंद होती हैं और बड़े पैमाने पर अवैध खनन-परिवहन का काला खेल शुरू होता है, जिसके लिए बेशक माफिया उत्तरदाई बताए जाते हैं, लेकिन असल उत्तरदाई भी जिम्मेदार होते हैं, जो अपनी जिम्मेदारी रंगीन कागजों के एवज में भूल जाते हैं। मोटी-मोटा अगर यह माना जाए कि प्रतिदिन 30,000 रुपये खर्चा काटने के बाद किसी श्साहबश् तक पहुँचाया जाता है, तो वह रकम महीने में 9 लाख रुपये पहुँच जाती है और यही कारण है कि कुर्सी का मोह भी बरकरार रहता है। खैर, खुलासे के लिए वीडियो-ऑडियो जैसे साक्ष्य हैं, जो अगली कड़ी में रखे जाएँगे।
ग्रामीणों ने लगाई मदद की गुहार
बीते लगभग तीन दिनों से सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर हमारी टीम उल्लिखित गाँव के आसपास अवैध खनन की जाँच कर रही थी, जिसकी भनक स्थानीय ग्रामीणों को लगी, तो उन्होंने कहीं से हमारी टीम का नंबर जुगाड़ कर हमसे संपर्क साधकर मदद की गुहार लगाई और आवश्यक प्रमाण दिए, जिनका खुलासा हम अगले अंक में करेंगे। दर्द बताते-बताते लगभग रुआंसे हो चुके ग्रामीणों ने बताया कि ष्फोटो-वीडियो बनाने आप या अन्य कोई पत्रकार गाँव में न आएँ, उन पर भी हमले का खतरा है। वन विभाग की टीम आई थी, तो उन पर हमला करने का प्रयास किया गया था। पुलिस सिर्फ इन माफियाओं की सुनती है, लेकिन हमारी बात अधिकारियों तक कृपया पहुँचाएँ। अब तो बच्चों का स्कूल और हमारा दिनचर्या का कामकाज भी तेज रफ्तार दौड़ते ट्रैक्टरों की वजह से प्रभावित होने लगा है।ष् इसके साथ ही विभाग और मिलीभगत के किस्से ग्रामीणों ने नाम न बताने की शर्त पर खोलकर रख दिए। सौ बात की एक बात यह रही कि इस खदान का संचालन कथित जिम्मेदार मोनू और मोनू द्वारा कराया जाता है, न कि किसी सरगना माफिया द्वारा। उनकी भूख की उपज हैं यह अवैध खदान और ‘साहब’!
इनका कहना है
श्रद्धा पेंड्रो, दक्षिण वन मंडल अधिकारी, शहडोल:
‘‘ग्रामीणों की सूचना पर लगभग 20 दिन पूर्व मैं स्वयं अपनी टीम लेकर खरबना गाँव गई थी। हमारे द्वारा कार्रवाई की गई। इस दौरान माफियाओं ने हमला करने का प्रयास भी किया। बुलाने पर पुलिस नहीं पहुँची। सहयोगी ने थाने पर मुकदमा भी दर्ज कराया है। काफी देर तक हम वहाँ पर थे, लेकिन बुलाने पर भी पुलिस नहीं आई। वहीं तीन दिन पूर्व भी हमारे डिप्टी रेंजर को रोककर कथित रेत माफिया द्वारा धमकाया गया है, जिस पर भी कानूनी प्रक्रिया के निर्देश जारी किए गए हैं।’’
राहुल शांडिल्य, खनिज अधिकारी, शहडोल:
‘‘जानकारी आपके माध्यम से संज्ञान में आई है। यदि बड़े पैमाने पर रेत का अवैध उत्खनन हो रहा है, तो पुलिस और वन विभाग की संयुक्त टीम के सहयोग से कार्रवाई की जाएगी।’’
(इस संबंध में जानकारी के लिए थाना प्रभारी गोहपारू से संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन किन्हीं कारणों से उनसे बात न हो सकी।)
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